ऊर्जित पटेल दे सकते हैं इस्तीफा, केंद्र सरकार ने इतिहास में पहली बार RBI पर चलाया ब्रह्मास्त्र
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : मोदी सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक यानी आरबीआई के खिलाफ 'ब्रह्मास्त्र' का इस्तेमाल कर दिया है। इतिहास पलटकर देखें तो आरबीआई ऐक्ट, 1934 के तहत केंद्र सरकार ने इस अधिकार का इस्तेमाल पहली बार किया है। आरबीआई ऐक्ट के सेक्शन 7 के तहत सरकार को यह अधिकार हासिल है कि वह सार्वजनिक हित के मुद्दे पर आरबीआई को सीधे-सीधे निर्देश दे सकती है, जिसका पालन करने से आरबीआई मना नहीं कर सकता। अब इस बात की आशंका प्रबल होती दिख रही है कि सरकार और आरबीआई के बीच मनभेद बढ़ सकती है और इसका परिणाम आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल का इस्तीफा हो सकता है।
क्या है आरबीआई ऐक्ट 1934 की धारा-7
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ऐक्ट, 1934 की धारा 7 कहती है, 'केंद्र सरकार सार्वजनिक हित को अनिवार्य मानते हुए बैंक के गवर्नर से मशविरे के बाद समय-समय पर इस तरह के निर्देश दे सकती है।' सेक्शन 7 के तहत आरबीआई को निर्देश दिए जाने का मामला पहली बार तब आया था जब कुछ बिजली उत्पादक कंपनियों ने आरबीआई के 12 फरवरी को जारी सर्कुलर को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। इस सर्कुलर में डिफॉल्ट हो चुके लोन को रीस्ट्रक्चरिंग स्कीम में डालने से रोका गया है। आरबीआई के सलाहकार ने जब बताया कि कानूनी तौर पर सरकार केंद्रीय बैंक को आदेश दे सकती है, तो कोर्ट ने अगस्त महीने में जारी अपने आदेश में कहा कि सरकार ऐसा निर्देश देने पर विचार कर सकती है। लेकिन डर इस बात का है कि सरकार के इस आक्रमक रवैये से आरबीआई की स्वायत्तता को लेकर केंद्र सरकार की मंशा पर सवाल खड़ा हो सकता है। पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने ट्वीट कर इस बात के संकेत दे भी दिए हैं जिसमें आरोप लगाया गया है कि सरकार अर्थव्यवस्था के तथ्यों को छिपा रही है और बेचैन है।
दरअसल, सेक्शन 7 के इस्तेमाल के बाद केंद्रीय बैंक के पास अपनी मर्जी से फैसले करने की गुंजाइश बहुत कम रह जाती है। लेकिन डर इस बात का है कि आगे की सरकारें आरबीआई के साथ छोटे-छोटे मुद्दों पर भी मतभेद होने पर इस सेक्शन का इस्तेमाल करते हुए अपना एजेंडा थोपने लगेंगी। वर्तमान हालात की बात करें तो मोदी सरकार पावर सेक्टर में फंसे कर्जों (नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स यानी एनपीए) को लेकर तय नियमों में ढील चाहती है। मौजूदा नियमों के तहत लोन डिफॉल्ट पर कंपनियों को बैंकरप्ट्सी कोर्ट में घसीटने का प्रावधान है। एक बार कंपनियां इस कोर्ट में चली गईं तो उन्हें या तो बिकना पड़ता है या उसे बचाने के लिए सरकार को फंडिंग देनी पड़ती है। वहीं, प्रॉम्प्ट करेक्टिव ऐक्श यानी पीसीए को लेकर सरकार की चिंता यह है कि पीसीए के वर्गीकरण से सार्वजनिक क्षेत्र के 11 बैंकों और निजी क्षेत्र के एक बैंक पर कर्ज देने को लेकर कड़ी शर्त लगा दी। सरकार को लगता है कि इससे कुछ क्षेत्रों में फंडिंग का सूखा पड़ रहा है।
इकनॉमिक टाइम्स की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट की मानें तो आरबीआई ऐक्ट, 1934 के सेक्शन 7 के तहत सरकार को मिले अधिकार के तहत बीते एक-दो सप्ताह में आरबीआई गवर्नर को दो अलग-अलग पत्र भेजे गए हैं। सरकार ने केंद्रीय बैंक को पत्र भेजकर नॉन-बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियों के लिए लिक्विडिटी, कमजोर बैंकों को पूंजी और लघु एवं मध्यम उद्योगों को कर्ज प्रदान करने का निर्देश दिया है। अनुमान लगाया जा रहा है कि सरकार के इसी प्रत्याशित कदम से आरबीआई के डिप्युटी-गवर्नर विरल आचार्य आगबबूला हो गए और केंद्र सरकार को आरबीआई की स्वतंत्रता पर कुठाराघात करने के घातक परिणामों की चेतावनी दे डाली।