सरदार पटेल की नजर में पंडित नेहरू
संजय श्रीवास्तव
कुछ दिनों पहले मुझे एक पुराना दस्तावेज मिला, जिसमें पटेल ने नेहरू के बारे में अपने संस्मरण लिखे थे। इसे पढ़ा जाना चाहिए, कम से कम आज के संदर्भों में जब दोनों के रिश्तों को लेकर बहुत कुछ कहा जा रहा है। पटेल ने ये विचार नेहरू जी के 60वें जन्मदिवस पर जाहिर किए थे। 14 नवंबर 1949 को इस मौके पर नेहरू पर एक ग्रंथ का प्रकाशन हुआ जिसमें सरदार वल्लभ भाई पटेल, सर्वपल्ली राधाकृष्णन, गोविंद वल्लभ पंत समेत कई महान नेताओं ने उनके बारे में अपने विचार जाहिर किए थे--
जवाहर लाल और मैं कांग्रेस में सदस्य के रूप में, स्वंतत्रता संघर्ष में साथ रहे। हम कांग्रेस कार्यसमिति और अन्य संगठनों में सहयोगी के रूप में साथ रहे। हम गांधी जी के समर्पित अनुयायी के रूप में हमेशा उनका सानिध्य पाते रहे। दुख की बात है कि गांधी का मार्गदर्शन इन झंझावातों में हमें अब हासिल नहीं है। हम इस विराट देश के अथक प्रशासनिक बोझ में आपस में हिस्सेदारी करते हैं। हम एक दूसरे को इतने अंतरंग तरीके से जानते हैं और विभिन्न क्षेत्रों में गतिविधियों में लगातार रू-ब-रू होने के कारण काम करने की वजह से स्वाभाविक रूप से हम एक दूसरे के प्रति अनुराग रखते हैं। लगातार बरसों में हमारा आपसी स्नेह बढ़ता गया है। लोगों के लिए ये समझ पाना बहुत मुश्किल है कि जब अलग होते हैं और समस्याओं और मुश्किलों पर साथ विचार विमर्श की स्थिति में नहीं होते हैं तो एक दूसरे की कमी महसूस करते हैं। उनके प्रति पारिवारिक भाव, समीपता, अंतरंगता और भाइयों सरीखे प्रेम से ये संभव ही नहीं कि मैं उनकी लोकप्रियता और जनसमर्थन के प्रति खराब महसूस करूं या उन्हें नीचा गिराने की बात सोचूं। वो देश के प्रधानमंत्री ही नहीं बल्कि जनता के असल नेता और राष्ट्र के आदर्श हैं। वह लोगों के नायक हैं, जिनकी महान उपलब्धियां एक खुली किताब की तरह हैं और उसके लिए मुझे कोई प्रशस्ति देने की जरूरत नहीं है।
वह स्पष्ट और दृढ योद्धा हैं, जो हमेशा विदेशी ताकतों के खिलाफ मजबूती से सीधा लड़े। उत्तर प्रदेश में 30 वर्ष की उम्र के आसपास ही उन्होंने दमदार संगठनकर्ता के रूप में किसानों और मजदूरों का आंदोलन खड़ा किया। उन्हें कला से लेकर विज्ञान तक की गहरी समझ है। अन्याय उन्हें बर्दाश्त नहीं। अत्याचार से लड़ाई ने उन्हें गरीबों का मसीहा बना दिया। उन्हें गरीबों से सच्ची हमदर्दी है। वह दिल और आत्मा से अत्याचार के खिलाफ टकराते रहे हैं। बेशक उनकी गतिविधियों का दायरा बड़ा है और वह बहुत ढेर सारा काम चुपचाप कर डालते हैं। एक राजनेता के रूप में वह सीधा चलने में भरोसा रखते हैं। उन्होंने अल्प समय में ही बड़े संस्थानों की स्थापना की, जिसमें हम सबने भी अपनी भूमिकाएं अदा कीं। वह एक आदर्श के रूप में ढले और जिंदगी में सुंदरता और कला के प्रति समर्पित रहे। नेहरू जी धीरे धीरे दुनिया के तमाम नेताओं के बीच ताकत बनते चले गए। आगे बढ़ते गए। विदेशों में लगातार उन्होंने अपनी भारतीयता की छाप छोड़ी। उन्होंने शुरुआत से ही दुनिया के प्रति समझ और समस्याओं के प्रति एक नजरिया विकसित किया और इस मुकाम पर आगे बढ़ते गए। कभी पीछे मुडक़र नहीं देखा। देश और बाहर उन्होंने अपने कद का अहसास कराया। नजरिया, विजन के प्रति स्पष्टता और भावनाओं में शुद्धता, दृढ निश्चय के प्रति गंभीरता जैसी खासियतों ने उन्हें देश और बाहर लाखों-करोड़ों के सम्मान का हकदार बना दिया।
जब देश को आजादी मिल रही थी, तब वह हमारे लिए रोशनी के पुंज सरीखे थे। जब आजादी के बाद देश के सामने एक के बाद एक समस्याएं और कठिनाइयां सामने आकर खड़ी होती रहीं, तब उन्होंने मजबूती के साथ इनका सामना किया, ऐसे मौकों पर वह हमारे और असंख्य लोगों के भरोसे के प्रतीक बने रहे। मुझसे ज्यादा ये बात कोई नहीं जानता कि पिछले दो सालों के बेहद मुश्किल दौर में उन्होंने किस कदर मेहनत की। देश के सबसे महत्वपूर्ण आफिस में होने के नाते वह हमेशा चिंताओं से ग्रस्त रहते थे। वह अपने काम को पूरी निष्ठा और जिम्मेदारी से संभाल रहे थे, सींच रहे थे और अपनी छाप छोड़ रहे थे। उनकी कोशिश थी कि लालफीताशाही की बाधाओं को तोडक़र शरणार्थी बेरोकटोक उनका दरवाजा खटखटा सकें। कॉमनवेल्थ देशों के बीच मंत्रणा में उनका योगदान हमेशा बहुमूल्य होता था। विश्व स्तर पर वह ऐसे शख्स थे, जिन्होंने बहुत यादगार भूमिका अदा की। इन सबके बीच उनका स्वाभाविक युवा अंदाज बना रहा। जो उनके शांतचित्त स्वाभाव के साथ संतुलन रखता है। ये सही है कि हम सभी कभी न कभी उनके गुस्से के शिकार बने। लेकिन वह कभी लेटलतीफी और गलत काम बर्दाश्त नहीं कर पाते। मुस्तैदी और सही के पक्षधर हैं। चूंकि वह समय के बेहद पाबंद हैं, लिहाजा इसका सकारात्मक असर कामों पर दिखा।
उम्र में उनके बड़ा होने के नाते ये मेरा अधिकार है कि मैं उन्हें मुख्य समस्याओं, जिनका हम प्रशासनिक और संगठनात्मक स्तर पर सामना कर रहे हैं, के बारे में सुझाव दूं। ऐसी समस्याओं और दिक्कतों को लेकर जिनका सामना हम करते हैं। मैं हमेशा इस बात के लिए उनका कायल रहा कि वह तुरंत किसी भी विचार या पहल के लिए तैयार दिखते हैं। हालांकि कुछ लोगों ने अपने कथित स्वार्थ के चलते धारणा पैदा करने की कोशिश की और जिसे कुछ हलकों में स्वीकार भी कर लिया गया कि हममें मतभेद और दूरियां हैं, जबकि इसके उलट हम जीवनपर्यंत मित्रों और सहयोगियों की तरह काम करते रहे हैं। एक दूसरे के नजरिये को समझने की कोशिश करते हैं, उनसे तालमेल बिठाने की कोशिश करते हैं। ये समय का तकाजा भी है। हम एक दूसरे की सलाह का सम्मान करते हैं क्योंकि हम आपस में विश्वास करते हैं।
उनके मूड का कोई ठिकाना नहीं, वह कभी तरुण उत्साह और प्रफुल्लता से भरे होते हैं तो कभी गांभीर्य और परिपक्वता से पूर्ण-उनके स्वाभाव में एक लचीलापन भी है जो शांत करने वाला और सबको साथ लेकर चलने वाला है। वह घर में भी एेसे ही होते हैं। बच्चों के बीच बच्चे बन जाते हैं तो बुजुर्गों के बीच विचारक। ये उनकी विविधता ही है और उनके अंदर का युवा, जो हैरत में डालने वाला प्राणयुक्त होता है, इससे उनकी मौजूदगी में एक ऊर्जा और ताजगी महसूस होती है। ये वाकई मुश्किल है कि हम उनसे जैसे महान और शानदार व्यक्तित्व को कुछ शब्दों में समेट कर उनके साथ न्याय कर पाएं। उनका व्यक्तित्व इतना विराट और बहुआयामी है साथ ही ज्ञानवान भी कि कई बार उनके विचार इस कदर गहराईपूर्ण होते हैं कि उसकी थाह लेना आसान नहीं। हालांकि वह पारदर्शी, युवा मजबूती से युक्त हैं, यही बात उन्हें वर्गों, समुदायों, धर्मों, जातियों और समूहों से परे कर हर किसी का हरदिल अजीज बना देती है। वह स्वतंत्र भारत की अमूल्य संपत्ति हैं और हमारा सौभाग्य कि हम उन्हें उनके 60वें जन्मदिन पर सम्मान दे पा रहे हैं। वह महान की सीढियों पर चढ़ें। साथ ही देश और अपने आदर्शों की राह में महान उपलब्धियां हासिल करें।
वल्लभ भाई पटेल
14 अक्टूबर 1949
(लेखक के ब्लॉग समय की डायरी से साभार)