सुशासन बाबू की यारी गजब की न्यारी
प्रवीण कुमार
जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जिन्हें प्यार से सुशासन बाबू भी कहा जाता है ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि अवसरवादी राजनीति से उनकी यारी गजब की न्यारी है। 12 साल में 6 बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेना वाकई कमाल की बात है। राजद-जेडीयू-कांग्रेस के त्रिगुट से बने महागठबंधन से यारी तोड़ जब नीतीश कुमार ने बिहार के मुख्यमंत्री पद से बुधवार को इस्तीफा दिया था तो सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें ट्वीट कर भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लड़ने के लिए बधाई दी थी। भारतीय राजनीति के इतिहास में शायद ऐसा पहली बार हुआ होगा जब देश के प्रधानमंत्री ने किसी मुख्यमंत्री को उसके इस्तीफा देने पर बधाई दी हो। मुझे लगता है शायद ये भी पहली बार हुआ होगा कि अपने किसी कैबिनेट सहयोगी के भ्रष्ट आचरण को लेकर किसी मुख्यमंत्री ने इस्तीफा दिया हो।
दक्षिणपंथी राजनीतिक को करीब से जानने वाले कहते हैं कि नीतीश कुमार की वैचारिक प्रतिबद्धता भाजपा के सांचे में ज्यादा फिट बैठती है। यह ठीक बात है कि नीतीश कुमार ने अपने राजनीतिक कालखंड में जो सर्वाधिक बेहतर समय गुजारे हैं उसमें अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री और फिर बिहार में भाजपा के साथ गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री बनना शामिल है। इतना वक्त भाजपा संग गुजारने के बाद भी अगर नीतीश भाजपा के पीएम उम्मीदवार बनाए जाने पर नरेंद्र मोदी का खुला विद्रोह कर बिहार में एनडीए की सरकार गिरा देते हैं तो इसे क्या कहेंगे? अगर भाजपा कार्यकर्ताओं के इतने ही स्वभाविक नेता नीतीश कुमार हैं तो भाजपा के खिलाफ 2015 के बिहार चुनाव में चारा घोटाले के जनक लालू यादव के साथ मिलकर महागठबंधन क्यों बनाया? नीतीश कुमार अगर भाजपा कार्यकर्ताओं के इतने ही स्वभाविक नेता हैं तो वह भाजपा में खुद को विलय क्यों नहीं कर देते हैं।
मुख्यमंत्री पद पर बने रहने के लिए नरेंद्र मोदी का खुला विरोध, मुख्यमंत्री बने रहने के लिए लालू यादव के साथ महागठबंधन बनाकर चुनाव जीत पीएम मोदी को अपनी ताकत का अहसास कराना और फिर कुर्सी की सलामती के लिए मोदी-शाह की जोड़ी के साथ हाथ मिलाकर लालू को उनकी औकात बताना यह तो अवसरवादी राजनीति का कोई महात्मा ही कर सकता है। लोग भले कहें कि नीतीश कुमार की राजनीतिक प्रतिबद्धता भाजपा में रचती और बसती है लेकिन सच यही है कि नीतीश कुमार की कोई राजनीतिक प्रतिबद्धता नहीं है। सत्ता में बने रहने के लिए उनकी राजनीतिक प्रतिबद्धता बदलती रहती है।
अगर याद हो तो अगस्त 2015 की बात है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जनता दल यूनाईटेड को जनता का दमन और उत्पीड़न पार्टी की संज्ञा दी थी। तब नीतीश ने पीएम मोदी पर पलटवार करते हुए बीजेपी (भाजपा) को बड़का झूठा पार्टी करार दिया था। तब नीतीश ने मोदी से कहा था कि भाजपा को हम लोग भारतीय जुमला पार्टी कहते थे लेकिन आप जिस स्तर पर चुनावी बातचीत को ले जा रहे हैं अब उससे काम नहीं चलने वाला है, अब उस व्याकरण के अनुसार भाजपा का नाम ‘बड़का झूठा पार्टी’ छोड़ कोई दूसरा नाम नहीं सूझ रहा है। नीतीश ने तब गुजरात दंगों का भी जिक्र किया था और कहा था कि आपने पिछली बार कह दिया कि आरजेडी ने जंगलराज फैलाया और इस वक्त बोल रहे हैं कि जेडीयू का मतलब जनता का दमन और उत्पीड़न है। आप गुजरात को क्यों भूल जाते हैं? भूल गए कि श्रद्धेय वाजपेयी जी ने आपको कहा था कि राजधर्म का पालन कीजिए?' लेकिन संयोग देखिए, नीतीश कुमार आज उसी बड़का झूठा पार्टी की गोद में जाकर बैठ गए हैं।
बिहार की चुनावी सरगर्मी के बीच अगस्त 2015 के उस दिन को याद करने का यह सही वक्त है जब नीतीश ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ट्वीट पर तंज कसते हुए कहा था कि 'इनका तो सब कुछ ट्विटर पर है। कहते भी ट्विटर पर हैं और सुनते भी ट्विटर पर ही हैं। जब हमने जाना कि यह ट्विटर की सरकार है तो हम अपनी बात कहने के लिए ट्विटर पर चले गए। वहीं पर हमने उनसे कुछ बातें कही, मगर वहां भी नहीं सुना गया। संयोग से जब नीतीश ने बुधवार को बिहार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया तो प्रधानमंत्री मोदी ने सबसे पहले ट्वीट कर नीतीश को बधाई दी। इतना ही नहीं, नीतीश ने पीएम मोदी के ट्वीट का जवाब देते हुए तहेदिल से शुक्रिया भी लिखा। इतना सब तो कोई अवसरवादी राजनीति से यारी रखने वाला ही कर सकता है।