सियासी चक्रव्यूह में फंसे सुशासन बाबू
अनिल वत्स
बिहार स्थित मुजफ्फरपुर बालिका गृह की भयावह स्थिति पहली बार अप्रैल 2018 में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (टीआईएसएस) की एक रिपोर्ट में उजागर हुआ था, लेकिन नीतीश सरकार ने महीनों-महीनों इस पर कोई कार्रवाई नहीं की। रोंगटे खड़े कर देने वाली इस भयानक स्थिति पर सुशासन बाबू यानी नीतीश कुमार की चुप्पी कुछ बड़े सवाल खड़े करती है। आखिर इतने दिनों तक टिस की इस रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई क्यों नही हुई? बिहार सरकार के अधिकारी जिनकी ये जिम्मेदारी बनती है कि समय-समय पर बालिका गृह का निरीक्षण किया जाए, वो क्यों नहीं हुआ? आखिर किस आधार पर हर साल इस एनजीओ को अनुदान दिया जाता था? यही सवाल अब सुप्रीम कोर्ट ने भी नीतीश सरकार से पूछा है।
अब इस मामले ने तूल पकड़ लिया है। भारी संख्या में लोग सड़कों पर विरोध प्रदर्शन भी कर रहे हैं। विपक्षी दल भी इस मुद्दे पर एकजुट हुए हैं और नीतीश सरकार की आलोचना कर रहे हैं। हालांकि ये कोई पहला मौका नहीं है जब नीतीश सरकार के खिलाफ लोग सड़कों पर हैं और विपक्षी दल एकजुट हुए हैं। पिछले कुछ समय से बिहार में कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ी है। आपराधिक घटनाएं बढ़ी हैं। महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़े हैं। सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं भी कुछ ज़्यादा ही देखने और सुनने को मिल रही हैं लेकिन नीतीश सरकार इन सब मुद्दों पर उतनी कठोर नहीं दिखाई दे रही है जिसके लिए नीतीश कुमार (सुशासन बाबू) जाने जाते हैं। इन सब घटनाओं को देखकर तो यही लगता है कि एक वक्त में जो नीतीश कुमार 2019 के लिए मोदी के खिलाफ विपक्ष का चेहरा बनने की तरफ बढ़ रहे थे, आज वह अपने ही चक्रव्यूह में फंसते नजर आ रहे हैं।
राजनीतिक दृष्टि से देखा जाए तो बिहार में हो रही इन सब घटनाओं से सबसे ज्यादा नुकसान नीतीश कुमार का ही हो रहा है। भाजपा को ये अच्छी तरह से समझ में आ गया है कि नीतीश कुमार के पास बहुत ज़्यादा विकल्प अब बचे नहीं हैं और छवि भी धूमिल हुई है। भाजपा से दोबारा गठबंधन के बाद या तो फायदा भाजपा का हुआ है या फिर बीमार लालू के लाल तेजस्वी यादव को। नुकसान का हिस्सा केवल नीतीश कुमार के पाले में गया है और इस नुकसान में सीधा फायदा भाजपा को पहुंच रहा है या फिर राजद को। भाजपा के साथ दोबारा सरकार बनाने के बाद भाजपा का भी रुख कुछ बदला-बदला सा नज़र आने लगा है। अबकी बार लोकसभा चुनावों मे नीतीश के लिए भाजपा से सौदेबाजी करना उतना आसान नहीं रहेगा। दूसरी तरफ तेजस्वी यादव एक मंझे हुए नेता के रूप मे उभर रहे हैं और उनके साथ विपक्षी दल भी लामबंद हो रहे हैं। नीतीश सरकार के लिए आने वाले दिन चुनौतीपूर्ण हैं। एक तरफ अपने ही सहयोगी से कड़ाई से निपटना ताकि वो सरकार में रहते हुए कोई मुद्दा हाईजेक ना कर ले और दूसरी तरफ लोगों को एक बेहतर सरकार देना जिससे विपक्षी दलों के हाथ कोई मुद्दा ना लगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और लेख में व्यक्त विचार उनके निजी मत हैं।)