महाराष्ट्र : 2017 में कर्जमाफी के बावजूद 4500 किसानों ने की आत्महत्या
सिर्फ महाराष्ट्र की बात करें तो बीते पांच (2014-18) सालों में 14,034 किसानों ने आत्महत्या की है। इस तरह हर दिन औसतन आठ किसानों ने आत्महत्या की है। वास्तव में जून 2017 में राज्य सरकार द्वारा कर्जमाफी के लिए 34,000 करोड़ रुपये के ऐलान के बाद 4,500 से अधिक किसानों ने आत्महत्या की है।
21 सरकारी बैंकों के साथ एक साल में 25,775 करोड़ की धोखाधड़ी : RTI
सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत प्राप्त जानकारी से खुलासा हुआ है कि बीते वित्तीय वर्ष में बैंकिंग धोखाधड़ी के अलग-अलग मामलों के कारण बैंकों को कुल मिलाकर लगभग 25,775 करोड़ रुपये का नुकसान झेलना पड़ा।
नोटबंदी के बाद सरकार के पास कितना कालाधन आया, इसका ब्योरा दे वित्त मंत्रालय : सीआईसी
केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने वित्त मंत्रालय को नोटबंदी के बाद सरकार द्वारा जुटाए गए कुल कालेधन का ब्योरा देने को कहा है। सीआईसी ने वित्त मंत्रालय को इस बारे में एक साल पहले के सूचना के अधिकार (आरटीआई) आवेदन का जवाब देने का निर्देश दिया है।
वाह मंत्री जी! 9 लाख की घड़ी 45000 के जूते, फिर भी डिफॉल्टर
मोदी सरकार में शामिल जितने मंत्री उतने किस्से। अब एक आरटीआई से पता चला है कि केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री चौधरी बीरेन्द्र सिंह जिनके बारे में कहा जाता है कि वह 9 लाख की घड़ी और 45 हजार के जूते पहनते हैं, पर हरियाणा सरकार का 24 लाख रूपये से अधिक का बकाया है। उन्होंने घर और कार के लिए यह लोन लिया था। उन्हें 24.23 लाख रूपये का भुगतान करना है। उनके अलावा 13 अन्य विधायकों पर भी लोन बकाया है।
नमामि गंगे : प्रथम तिमाही में एक रुपया भी खर्च नहीं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना 'नमामी गंगे' की रफ्तार धीमी है। हाल यह है कि सरकार वर्तमान वित्त वर्ष 2015-16 की प्रथम तिमाही में इस पर एक भी रुपये खर्च नहीं कर पाई है। यह खुलासा सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत मांगी गई एक जानकारी से हुआ है।
सियासत : आपदा में राहत का अचूक हथियार
सूचनाधिकार के जरिए आपदा राहत घोटाला क्या सामने आया, उत्तराखंड में सत्ता पक्ष-विपश्र में सियासत तेज हो गई है। लेकिन सही अर्थों में देखा जाए तो राजनीति ही किसी भी राजनीतिक, सामाजिक या फिर दैवीय आपदा में जनता को राहत देने का सबसे बेहतर औजार साबित होती है।
क्या राजनीति दल पब्लिक अथॉरिटी नहीं है?
केंद्रीय सूचना आयोग के फैसले के बाद सूचना के अधिकार के दायरे में राजनीतिक दलों को होना चाहिए या नहीं होना चाहिए को लेकर जो एक बहस छिड़ी थी वह लगभग दम तोड़ गया है। क्योंकि सरकार ने फैसला किया है कि इससे संबंधित आरटीआई कानून में संशोधन लाया जाएगा और इसे संसद से पारित कराकर कानून बना दिया जाएगा जिसमें राजनीतिक दलों को सूचना का अधिकार कानून के दायरे से बाहर रखने का प्रावधान होगा। इसमें सभी राजनीतिक दलों की एक राय है।
सूचना का अधिकार और सियासी दल
केंद्र की यूपीए सरकार ने एक अतिमहत्वपूर्ण फैसला करते हुए राजनीतिक दलों को आरटीआई कानून के दायरे से बाहर रखने का प्रावधान करने वाले एक संशोधन विधेयक प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। दरअसल भारत में सूचना का अधिकार हमेशा से सियासत का एक हथियार रहा है। लगभग एक दशक के सामाजिक आन्दोलन के बाद भारत के लोगों को सूचना हासिल करने की आजादी साल 2002 में मिली।