बोफोर्स के मुकाबले कांग्रेस ने छेड़ा रफेल राग!
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली: राजनीति में तू डाल-डाल मैं पात-पात की कहावत अकसर चरित्तार्थ होती है। एक बार फिर देश की दो बड़ी राष्ट्रीय पार्टीयां आमने सामने हैं। सियासी दाव दूसरे की चाल को देखकर चला जा रहा है। हाल ही में खबर आई की सीबीआई बोफोर्स मामले को नए सिरे से कोर्ट में उठाएगी। अब तोते का पिंजरा नाम से विख्यात स्वतंत्र संस्थान जब ऐसा करे तो परदे के पीछे कौन हैंडल कर रहा है ये यूपीए के दौर में भी सब जानते थे और एनडीए के दौर में भी सबको भान है। बोफोर्स को लेकर चर्चा चल ही रही थी कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने राग रफेल छेड़ दिया। संसद के बाहर पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने इसे घोटाला करार दिया औऱ फिर अपने ट्विटर हैंडल से कटाक्ष कर दिया।
उन्होंने कहा- इस डील को लेकर सरकार ने कितना खर्च किया इस पर सरकार की चुप्पी की वजह टॉप सिक्रेट है। (वितरण या फैलाने के लिए नहीं) रक्षा मंत्री कहती हैं कि भारत और फ्रांस की सरकार के बीच हुए सीक्रेसी पैक्ट के चलते वह सौदे की डिटेल नहीं दे सकतीं। यानी A) संसद को खर्चे की जानकारी देना देश की सुरक्षा के लिए खतरा है। B) जो भी इस बारे में पूछे उसे राष्ट्र विरोधी करार दो। अपनी इस मुहिम के लिए राहुल ने #TheGreatRafaleMystery हैशट ैग का इस्तेमाल किया। राहुल के इस हमले के बाद कांग्रेस ने भी फ्रंट फुट पर आकर आठ सवालों की फेहरिस्त तैयार कर ली और प्रेस कांफ्रेस कर सरकार से जवाब मांगे। राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद, पार्टी प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला और लोकसभा में कांग्रेस की मुखर आवाज मलिकार्जुन खड़गे ने प्रश्नों की बौछार की।
कांग्रेस के सवाल:
1) क्या ये सही है कि पूर्व की यूपीए सरकार ने वर्तमान एक्सचेंज रेट के अनुसार प्रति रफेल एयरक्राफ्ट डील 80.95 मिलियन डॉलर यानी 526.1 करोड़ रुपए में की थी, जबकि वर्तमान सरकार ने प्रति एयरक्राफ्ट 241.66 मिलियन डॉलर यानी 1570.8 करोड़ रुपए में तय किया? इससे हुए खजाने के नुकसान के लिए जिम्मेदार कौन है?
2) प्रधानमंत्री ने 36 रफेल एयरक्राफ्ट की खरीददारी के एकतरफा फैसला कैसे ले लिया। ऐसा कर उन्होंने पहले फ्रांस के साथ हुए हमारी सरकार के समझौते को नजरअंदाज किया। ऐसा कर उन्होंने क्या अनिवार्य Defence Procurement Procedure’ यानी रक्षा खरीद प्रक्रिया का उल्लंघन नहीं किया?
3) 10 अप्रैल 2015 को 36 रफेल एयरक्राफ्ट्स को लेकर डील करने से पहले प्रधानमंत्री ने सुरक्षा मामलों के लिए गठित कैबिनेट समिति से जरूरी सहमति क्यों नहीं ली?
4)8 अप्रैल 2015 को विदेश सचिव ने रफेल डील को लेकर खरीददारी के प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया। लेकिन 2 दिन बाद 36 जहाजों की डील हो गई। आखिर इन 2 दिनों में ऐसा क्या हो गया?
5) तकनीकी तौर पर रफेल और यूरोफाइटर टाइफून एक समान थे। 4 जुलाई 2014 को टाइफून ने अपनी कीमतों को 20 फीसदी तक घटाने की बात भी कही। फिर प्रधानमंत्री मोदी और रक्षा मंत्री ने इस पर विचार क्यों नहीं किया?
6) सार्वजनिक उपक्रम HAL(हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड) को इस 36,000 करोड़ डील को offset contract (तकनीक के आदान प्रदान का अनुबंध) में नजरअंदाज क्यों किया गया? जबकि 13.3.2014 में एचएएल और डसाल्ट एवियेशन के बीच इसे लेकर एक समझौता हो चुका था।
7) एचएएल के मुकाबले एक निजी कम्पनी के पक्ष में क्यों जाने दिया गया, जबकि उस कम्पनी का एविएशन के क्षेत्र में कोई अनुभव नहीं है।
8) 17 नवंबर 2017 को रक्षा मंत्री ने कहा कि 36 रफेल विमान आपातकालीन परिस्थितियों के चलते खरीदे गए हैं। इस आपातकालीन खरीददारी के 35 महीनों बाद भी एक भी रफेल विमान डिलीवर क्यों नहीं हो पाए हैं।
गौरतलब है कि रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में एक सवाल के जवाब में दावा किया था कि भारत और फ्रांस की सरकार के बीच हुए सीक्रेसी पैक्ट के चलते वह सौदे की डिटेल नहीं दे सकतीं। इसके लिए उन्होंने भारत और फ्रांस की सरकारों के बीच राफेल एयरक्राफ्ट की खरीद से जुड़े अंतरसरकारी समझौते के आर्टिकल 10 का हवाला दिया।