पनगढ़िया ने सरकारी नीति की खोली पोल, कहा- योग्यता को काम नहीं और काम को बढ़िया दाम नहीं
सत्य प्रकाश
नई दिल्ली : देश नियोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले नीति आयोग ने कहा है कि भारत में बेरोजगारी बड़ी समस्या नहीं है बल्कि देश ‘योग्यता के अनुसार काम’ (अंडर इम्प्लायमेंट) और बेहतर मजदूरी (वेल पेमेंट) नहीं मिलने की चुनौती का सामना कर रहा है और इस पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है।
नीति आयोग ने केंद्र और राज्य सरकारों के विभागों और मंत्रालयों के लिए तीन साल का एजेंडा 'इंडिया : थ्री-ईयर एक्शन एजेंडा 2017-18 से 2019-20' जारी किया। इसमें आर्थिक, न्यायिक, नियामक ढांचा और सामाजिक क्षेत्र में व्यापक सुधार पर बल दिया गया है। एजेंडा में कहा गया है कि भारत में विकास की व्यापक संभावनाएं हैं और अगले दो से तीन वर्ष में आर्थिक वृद्धि दर 8 प्रतिशत तक पहुंचाई जा सकती है। इसलिए आने वाले वर्षों में गरीबी घटाने में बड़ी कामयाबी मिल सकती है। फिलहाल भारत की आर्थिक विकास दर का आंकडा 7.1 प्रतिशत पर है।
आयोग का मानना है कि मौजूदा समय में देश के सामने बेरोजगारी बड़ी चुनौती नहीं है बल्कि लोगों को ‘योग्यता के अनुसार काम’ नहीं मिल रहा है और उनको ‘उचित मजदूरी’ भी नहीं मिल रही है। भारत के सामने ‘योग्यता के अनुसार श्रम बल’ को काम देना और उनको ‘बेहतर मजदूरी’ देना प्रमुख समस्याएं हैं जिनपर सरकार को तुरंत ध्यान देना चाहिए।
पिछले कई दशकों से बेरोजगारी की दर दो से तीन प्रतिशत के बीच रहने का उल्लेख करते हुए नीति आयोग ने कहा है कि अधिकतर लोगों को काम मिला हुआ है लेकिन वह उनकी योग्यता के अनुरूप नहीं है और न ही उनको बेहतर वेतन मिल रहा है। इससे उत्पादकता प्रभावित होती है और आर्थिक विकास दर बाधित होती है। ऐसे लोग सूक्ष्म एवं लघु तथा स्व-रोजगार के क्षेत्र में कार्यरत हैं।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के आंकड़ों के हवाले से आयोग ने कहा है कि वर्ष 2015 में भारत में प्रति व्यक्ति आय 1604 डॉलर प्रति वर्ष रही है जबकि चीन में 8141 डॉलर थी। आयोग के अनुसार इस भारी अंतर का कारण प्रति व्यक्ति मजदूरी तथा उत्पादकता में अंतर है। इसी कारण से चीन के विनिर्माण क्षेत्र में भारत के मुकाबले प्रति श्रमिक उत्पादकता और मजदूरी तीन गुना अधिक है।
आयोग का कहना है कि भारत में न केवल विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादकता और मजदूरी अलग-अलग है बल्कि एक क्षेत्र की विभिन्न कंपनियों में भी उत्पादकता और मजदूरी में भिन्नता है जिससे स्थिति ‘योग्यता के अनुसार काम’ और ‘उचित मजदूरी’ की हालत और खराब हो गयी है। वर्ष 2011-12 के दौरान भारत मे कुल श्रमबल का 50 फीसदी हिस्सा कृषि क्षेत्र में लगा था लेकिन सकल घरेलू उत्पाद में इसकी हिस्सेदारी केवल 15 फीसदी रही थी। इसी तरह से विनिर्माण क्षेत्र में 20 श्रमिकों से कम संख्या वाले कारखानों की कुल श्रम बल में हिस्सेदारी 72 प्रतिशत थी लेकिन उत्पादन में हिस्सेदारी केवल 12 प्रतिशत दर्ज की गयी थी।
सरकार को सलाह देते हुए नीति आयोग ने कहा है कि आने वाले तीन वर्षों में आर्थिक विकास की गति बढ़ाने के लिए औपचारिक या संगठित क्षेत्र का विस्तार करते हुए बेहतर मजदूरी पर ध्यान देना चाहिए। इसके लिए श्रम आधारित उद्योग क्षेत्रों और सेवा क्षेत्र पर जोर देना होगा। भारत में अभी तक पूंजी आधारित और कुशल श्रमिक आधारित उद्योग सफल रहे हैं। इनमें ऑटोमोबाइल, ऑटो पार्ट, इंजीनियंरिंग उत्पाद, कीमती पत्थर एवं आभूषण, तेल परिशोधन, फार्मा, वित्तीय सेवाएं, सूचना प्रौद्योगिकी और इससे जुड़ी सेवाएं शामिल है। दूसरी ओर, श्रम आधारित उद्योग क्षेत्र परिधान, जूता उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण, इलेक्ट्रोनिक्स उत्पाद, हल्के उपभोक्ता उत्पाद, पर्यटन और निर्माण का प्रदर्शन साधारण या लचर रहा है।
200 से अधिक पेज के इस दस्तावेज में अगले तीन वर्ष के लिए केंद्र सरकार की योजनाओं के लिए क्षेत्रों को तय किया गया है और उन क्षेत्रों पर जोर दिया गया है जिनमें विकास की व्यापक गुंजाइश है। इसमें वर्ष 2019-20 तक शिक्षा, स्वास्थ्य, गुणवत्तायुक्त रोजगार, व्यापार, नवाचार, कराधान ऊर्जा, डिजिटल संपर्क, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, ग्रामीण विकास, रक्षा, रेल, सडक और निजी सरकारी भागीदारी में पूंजीगत व्यय बढ़ाने की जरुरत पर बल देते हुए पुलिस, न्यायिक, आर्थिक और श्रम सुधारों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा गया है। महिलाओं, अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय के विकास को भी एजेंडा में शामिल किया गया है। शहरीकरण करने के उपाय सुझाते हुए कहा गया है कि सस्ते आवास, बुनियादी विकास, सार्वजनिक परिवहन और स्वच्छ भारत को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।
नीति आयोग ने काले धन और भ्रष्टाचार को समाप्त करने और कर आधार बढ़ाने के लिए कई उपाय सुझाए हैं। इसके अलावा चुनाव प्रक्रिया और प्रशासनिक सेवाओं में सुधार पर बल दिया है। इसमें किसानों की आय दोगुनी करने के संबंध में भी उपाय सुझाए गए हैं। एजेंडा को तैयार करने से सभी केंद्र सरकार के मंत्रालयों, राज्यों, विशेषज्ञों, सामाजिक संस्थाओं और युवा लोगों के साथ गंभीर विचार विमर्श किया गया है। यह योजनाएं बनाने तथा उनके क्रियान्वयन में नीति निर्माताओं और राज्य सरकारों के लिए उपयोगी होगी।
(नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढिया 31 अगस्त को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। पद पर रहते हुए उनका यह अंतिम दस्तावेज है)