भाजपा के मंत्री क्यों मना रहे हैं मातम?
प्रवीण कुमार
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 403 विधानसभा सीटों में से एक भी सीट पर मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया। चार चरण का चुनाव खत्म होने के बाद अचानक ऐसा क्या हो गया कि एक के बाद एक तीन-तीन भाजपा नेता व मोदी सरकार के मंत्री पार्टी की इस गलती को कोस रहे हैं और मातम मनाने की भरपूर नौटंकी भी। सबसे पहले भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और मोदी सरकार में देश के गृह मंत्री राजनाथ सिंह, फिर भाजपा की फायरब्रांड नेत्री उमा भारती और फिर भाजपा के मुस्लिम नेता और केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी, एक के बाद एक ये नेता उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में किसी भी मुस्लिम को पार्टी के टिकट पर उम्मीदवार नहीं बनाने के फैसले पर सवाल उठाने लगे हैं। इन नेताओं के बयान को पार्टी की मुस्लिम विरोधी नीतियों के खिलाफ आवाज समझना ठीक नहीं होगा।
मोदी सरकार में मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी को इस बात का मलाल है कि भाजपा ने यूपी के चुनाव में एक भी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया। हालांकि नकवी कह रहे हैं कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। अगर कमी हुई है तो भरपाई भी सूद समेत की जाएगी। उन्होंने कहा कि बीजेपी के मुस्लिमों को टिकट न देने के आधार पर केंद्र सरकार के कामकाज को नहीं आंका जाना चाहिए। उन्होंने कहा, 'भाजपा समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलने में भरोसा रखती है और पार्टी की राज्य में सरकार बनने पर मुस्लिम समुदाय के लोगों को इसकी भरपाई की जाएगी। हमने सभी के सहयोग से केंद्र में सरकार बनाई। हम उत्तर प्रदेश में भी सरकार बनाएंगे।'
इससे पहले हिन्दुत्व की राजनीति करने वाली भाजपा की फायरब्रांड नेता और केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने 'सीएनएन-न्यूज 18' से कहा, 'मुझे सच में इस बात का दु:ख है कि हम किसी मुस्लिम प्रत्याशी को चुनाव मैदान में नहीं उतार सके। मैंने इस बारे में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और उत्तर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य से बात की थी कि किसी प्रकार एक मुसलमान को विधानसभा में लाया जाए।'
हालांकि उमा भारती की टिप्पणी पर उनकी ही पार्टी के विनय कटियार ने सवालिया लहजे में कहा, 'जब मुसलमान हमारे लिए वोट ही नहीं करते तो हम उन्हें टिकट क्यों दें?' मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, जब ये सवाल भाजपा के यूपी अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य से पूछा गया कि भाजपा ने किसी मुसलमान को टिकट क्यों नहीं दिया? तो उन्होंने साफ-साफ कह दिया कि कोई मुस्लिम कार्यकर्ता चुनाव जीतने के लायक ही नहीं था इसलिए टिकट नहीं दिया। कहने का मतलब यह कि भाजपा का 'सबका साथ-सबका विकास' का नारा सिर्फ जुमलेबाजी है। पूरे 20 प्रतिशत मुस्लिम आबादी के बीच से कोई एक प्रतिनिधि को भाजपा ने मौका ही नहीं दिया।
इससे पहले केंद्रीय गृह मंत्री और पूर्व भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने भी इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि इस चुनावी संग्राम में भाजपा को मुस्लिम प्रत्याशी उतारने चाहिए थे। टाइम्स नाउ के एडिटर राहुल शिवशंकर से खास बातचीत में राजनाथ सिंह ने कहा कि भाजपा को उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मुसलमान उम्मीदवारों को उतारना चाहिए था। 'हमने कई दूसरे राज्यों में अल्पसंख्यकों को टिकट दिए हैं। उत्तर प्रदेश में भी इस पर बात होनी चाहिए थी। मैं वहां नहीं था, मुझे जो पता है उसके आधार पर बोल रहा हूं। हो सकता उन्हें (भाजपा संसदीय बोर्ड को) कोई जीतने योग्य मुस्लिम उम्मीदवार नहीं मिले हों। लेकिन, मेरा मानना है कि फिर भी उन्हें (मुसलमानों को) टिकट मिलना चाहिए था।'
उत्तर प्रदेश में मुस्लिम आबादी 20 प्रतिशत के करीब है। भाजपा लगातार कहती रही है कि टिकट बंटवारा योग्यता और उम्मीदवार के जीतने की संभावना के आधार पर तय होता है न कि जाति और धर्म के आधार पर। इसकी पुष्टि यूपी भाजपा के अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य ने भी यह कहकर साफ कर दिया कि कोई मुस्लिम कार्यकर्ता चुनाव जीतने के लायक ही नहीं था। तो बड़ा सवाल यह उठता है कि पार्टी के कद्दावर नेता और मोदी सरकार के तीन-तीन वरिष्ठ मंत्री राजनाथ सिंह, उमा भारती और मुख्तार अब्बास नकवी को यूपी में चार चरणों के चुनाव संपन्न होने के बाद अचानक मुस्लिमों को चुनाव उम्मीदवार न बनाना भाजपा की गलती क्यों लग रही है?
निश्चित रूप से इस बयान के पीछे यूपी चुनाव में बाकी बचे चरणों के मतदान जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी भी शामिल है, मुस्लिम मतदाताओं को भाजपा की तरफ आकर्षित करने की एक रणनीतिक चाल है। क्योंकि भाजपा आलाकमान को यह अच्छे से पता है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को मुसलमान मतदाताओं ने भी बड़ी संख्या में वोट किया था। इस चुनाव में हवा का रूख भाजपा के पक्ष में नहीं दिख रहा है इसलिए भाजपा नेता इस तरह के 'सर्व-धर्म-सम्भाव' का कार्ड खेलकर और 'सबका साथ सबका विकास' के नारे को स्थापित करने की नीति के तहत इस तरह के बयान दे रहे हैं। ताकि मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में अपनी इज्जत बचा सकें।
दूसरी बात शायद भाजपा आलाकमान को यह लग रहा होगा कि चुनाव नजदीक आने पर कुछ ऐसा चमत्कारिक घटनाक्रम हो जाएगा कि बीच चुनाव में वोटों के ध्रवीकरण की लहर चल जाएगी और हिन्दुओं का करीब 80 प्रतिशत वोट का अधिक से अधिक हिस्सा भाजपा के पक्ष में आ जाएगा। लेकिन ऐसी कोई लहर नहीं चल पाने के बाद भाजपा को काफी निराशा हाथ लगी। इसलिए पार्टी ने 'सबका साथ-सबका विकास' के जुमले को एक बार फिर से उछालकर इसके तहत यह जताने की कोशिश कर रहे हैं कि हम मुस्लिमों के खिलाफ नहीं हैं। हम सब चाहते तो थे और पार्टी को मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारना चाहिए था।
गौर करने वाली बात यह भी है कि मुस्लिमों से सहानूभूति रखने वाले बयान पार्टी के अंदर से नहीं बल्कि मोदी सरकार के मंत्रियों की तरफ से आ रहे हैं। संकेत साफ है कि मुस्लिमों को लेकर पार्टी की नीति में कोई बदलाव नहीं आया है। सरकार का धर्म होता है कि देश के हर वर्ग के लोगों का समान विकास हो लेकिन यह भी नहीं भूलना चाहिए कि हर पार्टी अपने सिद्धांतों की राजनीति करती है और जब वह पार्टी सरकार में आती है तो अपनी उसी विचारधारा को सरकार की नीति के रूप में पेश करती है। कहने का मतलब यह कि यूपी चुनाव में मुस्लिम उम्मीदवारों की अनदेखी को लेकर जिस तरह के बयान जारी किए जा रहे हैं यह महज मुस्लिम मतदाताओं को दिग्भ्रमित करने की एक चुनावी चाल है।
मालूम हो कि भाजपा की विरोधी पार्टियां चाहे वो सपा-कांग्रेस गठबंधन हो या फिर बसपा और राष्ट्रीय लोक दल हो, मुस्लिम वोट के सहारे ही अपनी नैया पार कराने की कोशिश में लगे हैं। यही वजह है कि इस बार के चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन ने 100 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है, वहीं मायावती ने 97 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। और चुनाव को आखिरी दो-तीन चरणों में भाजपा को भी याद आया कि हमसे गलती हो गई। हमें भी मुस्लिम उम्मीदवार उतारने चाहिए थे।