सोशल मीडिया से बदल रही है सियासत
सोशल मीडिया राजनीति का नक्शा बदलने के लिए तैयार है। इसने छद्म व्यवहार करने वाले राजनीतिज्ञों के लिए नई मुसीबत खड़ी कर दी है। ये तकनीक आई सोशल मीडिया के ट्विटर, फेसबुक या दूसरे अन्य प्रचलित माध्यमों से। सोशल मीडिया की ताकत का अंदाजा राजनेताओं को नरेंद्र मोदी की बढ़ती लोकप्रियता के बाद लगा।
पलायन पहले मजबूरी थी, लेकिन अब जरूरी
द्वापर युग में जब भगवान इंद्र रूष्ट हुए और नंदगांव पर बादलों को सैलाब उड़ेलने भेजा, तब नंदगांव के मुखिया के बेटे कृष्ण ने प्रजा की रक्षा के लिए पूरा गोवर्धन पर्वत ही छाता बनाकर उठा लिया। आखिर कृष्ण की दृढता के आगे इंद्र को हार माननी पड़ी। लेकिन, उत्तराखंड में ऐसा न हो सका।
अर्थनीति : हम हैं दुनिया के भरोसे तो...
रुपया कब मजबूत होगा। इस सवाल के जवाब में जब हम भारतीय रुपये की मजबूती की कल्पना करते हैं तो शायद दिमाग में 64-65 का भाव अच्छा दिखता होगा। वजह ये कि जिस तेजी से रुपया डॉलर, पाउंड और दूसरी मुद्राओं के मुकाबले सरक रहा है उसमें हमें ये लगता है कि जहां है वहीं रुक जाए तो बात बन जाए। और, शायद भारत की सरकार भी कुछ ऐसा ही सोच रही है। इसी वजह से फिलहाल रुपये की मजबूती के कोई संकेत नहीं मिल रहे हैं।
कौन बांट रहा है सरकारी खैरात?
गरीबी जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप है और उससे भी बड़ा अभिशाप है गरीबी को कभी खत्म न होने देने के लिए सरकार की ओर से बांटा जाने वाला सरकारी खैरात। ध्यान से पढ़िएगा क्योंकि यह बात कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के संदर्भ कही जा रही है जिन्होंने दो दिन पहले एक सेमिनार में गरीबी की नई परिभाषा गढ़ी है।
इंडिया फर्स्ट नरेंद्र मोदी प्राइवेट लिमिटेड
नरेंद्र मोदी के विरोधी और समर्थक जितने मुखर हैं उतने शायद भारतीय राजनीति में कभी किसी नेता के नहीं रहे। नरेंद्र मोदी के विरोधी ऐसे कि गलती से कोई छोटी सी बात भी मोदी के खिलाफ हो तो उसको पहाड़ बनाने में नहीं चूकते और समर्थक भी ऐसे कि देश की हर समस्या की रामबाण औषधि मोदी को ही मानते हैं। फिर कोई नरेंद्र मोदी के रास्ते में बाधा बनता दिखता है तो उसकी मिट्टी पलीद करने से भी नहीं चूकते। फिर वो चाहे नोबल पुरस्कार विजेता भारत रत्न अमर्त्य सेना ही क्यों न हों।
सत्ता के निहितार्थ
सत्व या अस्तित्व के अपने मूल अर्थ से भटककर आज सत्ता उस सामर्थ्य या अधिकार की वाचक मात्र कैसे बन गई जिसके बल पर सत्तासीन शासक शासितों पर नियंत्रण रखता है- यह एक अलग कहानी है। अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए जीव-जगत को जिस समस्या से जूझना पड़ता है, मानव इतिहास के आदिकाल में आदि मानव को भी अस्तित्व के उसी संकट से रू-ब-रू होना पड़ता था।