जो ठीक नहीं वहां शिवसेना बोलेगी ही : उद्धव ठाकरे
शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने सामना को प्रदीर्घ लाइव साक्षात्कार दिया है। इस साक्षात्कार को उत्सफूर्त, बेबाक और उफान लाने वाला कहा जा सकता है। उद्धव ठाकरे का साक्षात्कार मतलब अन्याय पर वार और महाराष्ट्र द्वेषियों पर हमला। जीएसटी से लेकर नोटबंदी तक, चीन से लेकर कश्मीर तक और कर्जमुक्ति से लेकर भाजपा के व्यवहार को लेकर किए गए सवालों के उद्धव ठाकरे ने बेबाकी से जवाब दिए। अच्छे दिन केवल सरकारी विज्ञापनों में ही दिखाई दे रहे हैं। बाकी सब आनंद ही आनंद होने की बात उद्धव ठाकरे ने कही। संजय राउत ने उनसे किस्तों में उनसे लंबी बातचीत की। पेश है पूरा साक्षात्कार जिसे हमने मुंबई से प्रकाशित दोपहर का सामना अखबार से साभार लिया है : संपादक
सवाल- सावन शुरू होगा अब...
जवाब- हां तो?
सवाल- उसके पहले मुंबई का सबसे प्रिय त्योहार आ रहा है...गटारी।
जवाब- हो सकता है गटारी पर भी जीएसटी लग जाएगा।
सवाल- आप जीएसटी की बहुत चिंता कर रहे हैं?
जवाब- फिलहाल सयानापन इसी में है 'तुका म्हणे उगी राहावे, जे होईल ते पाहात राहावे' (कहे तुका शांत रहो, जो हो रहा है देखते रहो) लेकिन शिवसेना प्रमुख की विरासत चलानी हो तो शांत रहना हमारे खून में नहीं है। और जो कुछ हो रहा है उसे सिर्फ देखते रहना भी हमसे नहीं होगा।
सवाल- तो फिर आप क्या करेंगे?
जवाब- इसलिए जहां-जहां जो चीज हमें ठीक नहीं लगती, वहां-वहां हम अपने विचार मजबूती से रख रहे हैं। मजबूती से अपने विचार रखने पर तुम्हारा वो जीएसटी नहीं लगा है।
सवाल- आप जीएसटी से नाराज दिख रहे हैं?
जवाब- कैसी नाराजगी? सब कुछ गड़बड़ है। और यह गड़बड़ चुपचाप खड़े होकर देखने के लिए नहीं है। एक-डेढ़ साल पहले इस जीएसटी की चर्चा शुरू हुई तब शिवसेना सबसे आगे थी जिसने जीएसटी का फटका कैसे पड़ेगा यह बताया था। अब जिसका मामला हो वो संभाले। सहन करना है या आवाज उठानी है। गुजरात के छोटे व्यापारी भी रास्ते पर उतरे। वहां की सरकार ने उन्हें खूब पीटा।
सवाल- आपने मुंबई के लिए आवाज उठाई?
जवाब- हां! मैं उससे संतुष्ट हूं। जीएसटी से मैंने मुंबई को बचाया और उसके साथ ही 27 महानगरपालिकाओं को उसका फायदा हुआ। चुंगी के माध्यम से जो राजस्व मिल रहा था वह भी सुरक्षित रख दिया है।
सवाल- लेकिन जीएसटी लागू करते हुए सरकार की ओर से इसे देशहित, जनहित, उद्योगहित, एक देश एक कर प्रणाली बताया गया। इसका आपने विरोध किया?
जवाब- विरोध करने के पीछे एक ही उद्देश्य था कि हमारे यहां सबका केंद्रीकरण करना है और विकेंद्रीकरण करना है। अगर जिसकी लाठी उसकी भैंस ही राज करने का तरीका है तो जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे तब उन्होंने पंचायती राज को निचले तबके तक पहुंचाया था। आज मोदी प्रधानमंत्री हैं ओर उस स्वायत्तता को समाप्त कर सब कुछ केंद्र के हाथ में रखने का काम शुरू है।
सवाल- आप कहना क्या चाहते हैं?
जवाब- मैं कुछ नहीं कहना चाहता। जो कोई भी प्रधानमंत्री हो उसकी इच्छानुसार ही कामकाज चलाया जाने वाला होगा तो हमारे देश में सच में लोकतंत्र का क्या? लोगों के मत और बात की कुछ कीमत है क्या? मुझे हमेशा यह लगता है कि सुधार आवश्यक है। हमें सुधारवादी होना चाहिए। लेकिन सुधार करते समय और एक निर्णय लेते समय रूक-रूक कर देखना चाहिए कि हमने आज तक जो निर्णय लिए उसका उपयोग हो रहा है कि दुरूपयोग हो रहा है। फायदा हो रहा है या नुकसान हो रहा है।
सवाल- फिर गत तीन सालों में केंद्र सरकार ने जो-जो कठोर निर्णय लिए हैं उनके बार में आपके यही विचार हैं?
जवाब- मैं तो कह ही रहा हूं। इस तीन साल के पहले खुद शिवसेना प्रमुख थे। उस समय जब अटल जी की सरकार थी तब भी जो चीज ठीक नहीं लगती थी, उसपर वे कड़ाई से बोलते थे। अब गत तीन सालों में वो काम मैं कर रहा हूं। शिवसेना प्रमुख हमेशा करते थे, कानून जनता के लिए है। जनता कानून के लिए नहीं है। कानून आसान होना चाहिए।
सवाल- तो नोटबंदी पर क्या बोलेंगे?
जवाब- नोटबंदी के समय भी शायद मैं ही पहला व्यक्ति था या एकमात्र मैं ही था जिसने दो दिन में अपनी भूमिका स्पष्ट कर दी थी। हो सकता है सरकार का निर्णय सही हो, लेकिन आम जनता को परेशान मत करो। दुर्भाग्य से आम जनता पिस गई। महीनों तक कतार में सड़ गए। मर भी गए। उसके बारे में कोई कुछ नहीं बोलता।
सवाल- नोटबंदी सफल हुई है क्या?
जवाब- मैंने आज ही देखा, मतलब पढ़ा। 4 महीने में लगभग 15 लाख लोग बेरोजगार हो गए। नौकरियां छूट गईं। मतलब 60 लाख लोगों को इसका झटका सहना पड़ा। यह सिर्फ और सिर्फ नोटबंदी के कारण तो जो उन 15 लाख लोगों ने नौकरियां गंवाई उनकी दाल-रोटी की व्यवस्था का क्या?
सवाल- सरकार को क्या व्यवस्ता करनी चाहिए?
जवाब- क्या मतलब? तुम्हें ही उन्हें नौकरी देनी चाहिए। तुम्हारी वजह से ही छूटी ना उनकी नौकरियां? तुमने जो स्टार्ट अप इंडिया, मेक इन इंडिया जैसे कार्यक्रम शुरू किए हैं और नोटबंदी का तालमेल कैसै होगा?
सवाल- लेकिन आप सत्य बोल रहे हैं। इसका मतलब आप सीधे-सीधे देशद्रोही हैं?
जवाब- ऐसा उन्हें लगता है। मैं क्या करूं? लेकिन जिनकी नौकरियां गईं उनकी नजर में देशद्रोही कौन है? मैं मोदी है इसलिए नहीं बोल रहा। प्रधानमंत्री, सरकार के रूप में जो तंत्र है उस पर बोल रहा हूं।
सवाल- मतलब?
जवाब- मुझे एक बात साफ करनी है। जब मैं या शिवसेना कुछ बोलती है, उस समय हमें सरकार विरोधी समझा जाता है। मैं सरकार विरोधी नहीं हूं। मैं जनता के साथ हूं।
सवाल- आप कर्जमुक्ति की बात करते हैं, जिससे सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी हो जाती हैं?
जवाब- सरकार के लिए भले ही मुश्किलें खड़ी हो जाती हैं, लेकिन इसका मतलब किसानों को रोज मरते हुए खुली आंखों से देखते रहने का क्या? मैं किसानों से भी अब यही कहता हूं। किसानों की कुर्जमुक्ति की बात मैं रखता हूं। इसका अर्थ शिवसेना सरकार में आपकी आवाज है।
सवाल- वर्तमान में राज्य व देश में सरकार के नाम पर जो कुछ भी चल रहा है इससे जनता गटारी के आनंद से चूक गई है?
जवाब- गटारी वर्ष में एक बार ही होती है। वह भी अमावस्या के दिन, लेकिन इसे भी त्योहार के रूप में अलग पद्धति से मनाने वाला अपना समाज है। परंतु कामकाज देखकर कहें तो रोज ही गटारी हो रही है। जनता ही बकरा और मुर्गी हो गई है। रोज उन्हें काटा जा रहा है।
सवाल- कर वसूली में गड़बड़ी दिखती है क्या?
जवाब- मैं कोई वित्त विशेषज्ञ नहीं और अर्थशास्त्र का विद्यार्थी भी नहीं। मैं आम आदमी के दुखों का विचार करता हूं। उसका भला कैसे हो यह देखता हूं और अगर हम देखें कि विभिन्न रूप से जमा होने वाले कर मतलब इनकम टैक्स ही देखो। जीएसटी अब आया है। अगर जनता एक रूपया कमा रही है तो उस रूपये में कितने पैसे तुम विभिन्न कर के रूप में ले रहे हो और फिर मेहनत करने वाली जनता को उनके पसीने का कितना लाभ उनके हाथ में आ रहा है? यह हिसाब सही में किसी ने रखा है क्या
सवाल- जीएसटी के चलते चुंगी नाकों पर दरारें पड़ गईं...
जवाब- चुंगी नाकों का मामला गंभीर है। जीएसटी से मेरी मुंबई को हुए नुकसान की भरपाई मैंने करवा ली। चुंगी जाने से यह नुकसान होने वाला था। रहा उनका सवाल जो रोज के रोज चुंगी भरते थे। आज नकद कल उधार यह उस समय का कामकाज था। मैं चुंगी नाके का भ्रष्टाचार का समर्थन नहीं करता लेकिन वहीं के वहीं आप चुंगी का पैसा भरकर मुक्त हो जाते थे।
सवाल- फिर अब क्या हुआ?
जवाब- अब ऐसा कहा जा रहा है कि कभी भी किसी भी समय इन व्यापारियों पर छापा मारा जा सकता है। मतलब जो कुछ चौखट के बाहर था उसे अब तुमने अपने घर में ले लिया है। लेकिन महत्वपूर्ण मुद्दा रह गया है कि चुंगी नाका अगर वीरान हो गया तो चुंगी के निमित्त वहां वाहनों की जांच होती थी, उन वाहनों में कौन सा माल है, क्या है इसकी जांच की जाती थी वह जांच अब बंद पड़ गई है। उसके बंद होने के बाद सभी वाहन सीधे बिना किसी जांच-पड़ताल के मुंबई में आ रहे हैं। वाहनों में क्या है, कौन उसमें बैठा है यह अब जांचा नहीं जाता।
सवाल- मतलब सब कुछ खुला है?
जवाब- और एक गंभीर बात ऐसी कि कदाचित आप हंसोगे मेरे तर्क पर। चीन की सेना अभी अपनी सीमा पर खड़ी है। मैं अभी खबरें देख रहा था इंटरनेट पर। उनकी मीडिया ने एक शोध किया है कि हिन्दुस्थान का कट्टर हिन्दू राष्ट्रवाद हिन्दुस्थान को युद्ध की ओर धकेल रहा है। इसकी बारीकी आपके ध्यान में आ रही है क्या? उनका कहना है कि हिन्दुस्थान में मुसलमानों को भड़काने का काम शुरू है। मुसलमानों पर हमले बढ़ गए हैं। मुझे ऐसा लगता है कि अपने यहां के मुसलमानों को भड़काने का प्रयत्न चीन कर रहा है क्या? जो मुसलमान आज शांत थे, उन्हें उकसाकर भड़काने का, फिर सीमा अशांत और घर में भी तनावपूर्ण माहौल ऐसे दोने स्तर पर अशांति फैली तो उस समय पता लगेगा कि चुंगी नाकों पर जांच का क्या महत्व था?
सवाल- अपनी ही सरकार पर भरोसा नहीं क्या?
जवाब- सरकार पर भरोसा क्यों रखें? मैं जो सुझाव देता हूं उसे निश्चित ही वे सुनते हैं। जैसा जीएसटी के संदर्भ में उन्होंने सुना, लेकिन हर समय मैं अगर कुछ कहूंगा तो आप उसे विरोध के रूप में समझोगे तो फिर उसका कोई अर्थ नहीं। यदि मैं कोई बात सुझाता हूं तो उसे तुम परखो। जो बातें मैं सुरक्षा के संबंध में कहता हूं उसकी अगर सही जांच नहीं की गई तो धोखा किसको?
सवाल- फिर भी आप रिलेक्स दिख रहे हो...
जवाब- मैं हमेशा ही रिलेक्स रहता हूं। खासकर आपको साक्षात्कार देते समय मैं हमेशा रिलेक्स रहता हूं।
सवाल- नया क्या शुरू है...
जवाब- पिछले समय भी इन्हीं प्रश्नों का उत्तर मैंने दिया था। फॉग शुरू है। अब भी वहीं प्रश्न पूछने पर वही उत्तर है और क्या, फॉग ही तो चल रहा है। मतलब थोड़े में कहें तो परिस्थिति में कुछ भी बदलाव जैसा नहीं है। पिछले वर्ष के और आज के साक्षात्कार में तीन चरण नए आए हैं उसमें एक नोटबंदी के बाद जीएसटी आया है और पिछले वर्ष की तुलना में इस समय सीमा पर धोखा बहुत बढ़ गया है। बेहत गंभीर बातें हूई हैं।
सवाल- लेकिन मानो देश की सभी समस्याएं हल हो चुकी हैं ऐसा माहौल है।
जवाब- ऐसी सिर्फ प्रचारबाजी चल रही है। प्रचार में जो कुछ चल रहा है वह सब सत्य ही है ऐसा मानना होगा तो आनंद ही आनंद है। समस्याएं सिर्फ सरकारी इश्तेहारों में हल हुई नजर आ रही है। वास्तव में क्या है?
सवाल- आप में और मुख्यमंत्री में संवाद बढ़ गया है। इसकी वजह से ऐसा आभास होता है कि सब कुछ ठीक चल रहा है।
जवाब- मेरे और वर्तमान मुख्यमंत्री के बीच व्यक्तिगत झगड़ा कभी भी नहीं था। मेरा और उनका वास्तव में अच्छा संबंध है। कई बार मैं जो सुझाव देता हूं वे उसे सुनते भी हैं। लेकिन आज जो चल रहा है मैं उस पर बोलता हूं। वे अपनी पार्टी की बात पेश करते हैं। मैं राज्य की जनता की बात करता हूं। अंतर सिर्फ इतना है।
सवाल- आपकी नाराजगी दिखाई दे रही है।
जवाब- नहीं, नहीं। नाराजगी कैसी। कर्जमुक्ति का ही उदाहरण ले लो। कर्जमुक्ति के मामले में मैंने अभी भी किसानों के बीच जाना बंद नहीं किया है। किसानों का सातबारा कोरा होना ही चाहिए। मेरे महाराष्ट्र का किसान कर्जमुक्त होना ही चाहिए। यह मांग पहले और सिर्फ शिवसेना ने ही की। उस समय पवार साहब केंद्र में कृषि मंत्री थे। उस वक्त भी और कुछ मैं नहीं जानता लेकिन खुदकुशी के मामले में महाराष्ट्र का किसान अव्वल था। दुर्भाग्य से आज भी वह अव्वल है। यह आपका ही लेखा जोखा कहता है। यह अव्वलपना नहीं चलेगा। इसलिए किसानों को कर्जमुक्त किया जाना चाहिए यह मेरी मांग थी और है भी।
सवाल- लेकिन अब तो कर्जमुक्ति हो गई न।
जवाब- हां, लेकिन वह सहज नहीं हुई। उसमें भी आपके उस ज्ञान का दोष है। कर्जमुक्ति का मुद्दा कब उपस्थित हुआ? बीते महानगर पालिक चुनाव के दरम्यान।
सवाल- महानगरपालिका का और कर्जमुक्ति का संबंध क्या है?
जवाब- हम जब यहां महानगरपालिक चुनाव लड़ रहे थे तब उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव शुरू थे और वहां भारतीय जनता पार्टी ने आश्वासन दिया कि राज्य में हमारी सरकार आयी तो किसानों का कर्ज माफ करेंगे। वहां वह चिंगारी सुलग उठी। मुद्दा फिर शुरू हो गया कि उत्तर प्रदेश में आपकी सरकार आनी बाकी थी। वहीं किसी ने भी कर्जमुक्ति की मांग नहीं की थी। महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के किसानों की आत्महत्या के आंकड़े यदि लिए जाएं तो मुझे नहीं लगता कि उत्तर प्रदेश में महाराष्ट्र जितने किसानों की खुदकुशी हुई होगी और तब कहा कि तुम कहते हो यदि उत्तर प्रदेश में सरकार आई तो, यहां महाराष्ट्र में आपकी सरकार है। मैं आपके साथ हूं। सरकार के दो वर्ष बीत चुके हैं। यहां के किसान तो आत्महत्या करते ही जा रहे हैं। फिर यहां के किसानों को कर्जमुक्त करने से पहले उत्तर प्रदेश में कर्जमुक्ति की जल्दबाजी क्यों कर रहे हो?
सवाल- अर्थात यहां से दोबारा शुरूआत हुई।
जवाब- चाहो तो ऐसा कहो। मैं तो इससे आक्रोशित हुआ ही। लेकिन अब विरोधियों ने भी बोलना शुरू कर दिया है। मैं मुख्यमंत्री से बोला, अब कर्जमुक्ति करनी ही पड़ेगी। मुख्यमंत्री ने भी कहा, हमें कर्जमुक्ति कहनी ही चाहिए। पूछा, कब करोगे? दिन पर दिन बीत रहे हैं। हालात अच्छे थे। इस बार फसल अच्छी होने पर सरकार ने अचानक नोटबंदी का हथौड़ा उनके सिर पर मार दिया।
सवाल- इससे क्या हुआ?
जवाब- किसानों का नकद व्यवहार सब थम गया। सामान्य किसानों की अर्थव्यवस्था पूरी तरह रोकड़ा अर्थात नकद के रूप में होती है। उन्हें तुमने खाता खोलकर बैंकों में पैसा जमा करने के लिए कतार में खड़ा कर दिया। वह जमा करने के बाद नोट बदलकर देने के लिए तुमने उन्हें धक्का खाने को मजबूर किया।
सवाल- बाद में अरहर का मुद्दा भी गरम हो गया।
जवाब- हां, अरहर की बंपर फसल हुई। अभी भी उनका भुगतान रूका हुआ है। अब तक इसकी वजह नोटबंदी के कारण निर्मित नकदी का अभाव रहा। यह नकदी का प्रभाव किसके कारण उत्तपन्न हुआ? पानी की कमी बारिश के अभाव में हुई लेकिन नकदी के अकाल में किसान परेशान हुआ और आज भी उसकी परेशानी खत्म नहीं हुई है। फिर इसका ठीकरा आप किसानों के सिर पर ही क्यों फोड़ते हैं? उसे समस्यामुक्त करो। कर्जमुक्त करो। यही मांग थी ना।
सवाल- लेकिन अब कर्जमुक्ति की घोषणा के बाद बर्तनों के बीच टकराव से होने वाली आवाज थम गई है।
जवाब- नहीं। बिलकुल नहीं। टकराव कहोगे तो वह थमा नहीं है। कर्जमुक्ति की घोषणा होने के बाद मेरा असली काम शुरू हुआ हैय़
सवाल- वो कैसे? यह तो सरकार का काम है?
जवाब- अब हमारा काम नजर रखने का है। अर्थात मोदी ने कहा कि दो करोड़ लोगों ने गैस सिलिंडर की सब्सिडी लौटा दी। क्या आपके पास कोई सूची है उन दो करोड़ लोगों की? किसी के पास सूची होगी तो मैं नहीं जानता। हर किसो को ऐसा लगता होगा कि हमारे गांव में नहीं हुआ होगा लेकिन बगल वाले गांव में निश्चित ही हुआ होगा। अब सवा सौ करोड़ लोगों के देश में दो करोड़ जनता को कौन ढूंढेगा? दो करोड़ लोगों ने मिस्डकॉल दे दिए तो क्या मुझे इसकी कल्पना नहीं है? लेकिन इन दो करोड़ लोगों का वास्तविक नाम किसके पास है? उसी तरह किसानों की कर्जमुक्ति का मामला भी है।
सवाल- आपको कुछ शंका है क्या?
जवाब- हां, निश्चित ही। 36 लाख किसानों का सातबरा कोरा होगा। 89 लाख किसानों को इसका लाभ मिलेगा। इसलिए मैंने कहा, मुझे विधानसभा में भी 36 लाख किसान और 89 लाख किसानों के नाम चाहिए, मिस्डकॉल नहीं। मैंने शिवसैनिकों को भी ऐसा सुझाव दिया है कि गांव-गांव जाकर जानकारी लें।
सवाल- और ढोल भी बजाएं।
जवाब- हां, बैंकों के बाहर ढोल बजाने के पीछे कारण यह है कि कर्जमुक्त हुए किसानों के नामों की हम जांच करेंगे। हम हमेशा बोलते रहे कि 36 लाख किसानों का सातबरा कोरा और 89 लाख किसानों की कर्जमाफी तो लोगों को झूठ भी सच लगने लगता है।
सवाल- अर्थात कर्जमुक्ति तंत्र में गड़बड़ी है?
जवाब- कर्जमुक्त होने तक किसानों को त्वरित रूप से 10 हजार रूपये देने थे। वह किसी तरह ढाई हजार किसानों को ही मिला है। ऐसी अवस्था होगी तो इसे गड़बड़ी नहीं तो क्या कहा जाए? कर्जमुक्ति के बारे में कहेंगे तो इस बारे में स्पष्ट सूचना अथवा पैसा बैंकों के पास नहीं पहुंचा।
सवाल- कर्जमुक्ति मामले में सरकार ने हाथ की सफाई दिखाई है ऐसा कहा जाए?
जवाब- आज के माहौल में कहेंगे तो इसमें निश्चित ही तथ्य है।
सवाल- हाथ की सफाई शुरू रहने तथा फिर किसानों को उसी चक्कर में फंसते रहने पर ढोल बजाने से क्या होगा?
जवाब- आज सिर्फ ढोल ही बजाया है। कल जो कुछ भी बजाना होगा हम बजाएंगे। लेकिन मैं ढोल सिर्फ इसलिए बजा रहा हूं कि बीच में मैंने एक खबर पढ़ी थीं।
सवाल- वह क्या थी?
जवाब- हमारा किसान कोई बेशर्म नहीं है। वह चोर तो निश्चित ही नहीं है। मह-मर मेहनत करता है, अपार परिश्रम करता है। बरसात होगी या नहीं, इसका कोई स्पष्ट विश्वास नहीं होने के बावजूद अपना घर-बार, जमीन, पत्नी के गहने गिरबी रखकर वह हमारे लिए अनाज उगाता है और फिर बारिश नहीं हुई तो उनकी मौत। ऐसा होता ही है। फिर अधिक फसल उत्तपन्न हुई तो बाजार भाव गिर जाता है। कई बार ऐसा भी होता है कि खेती से फसल बाजार में ले जाकर बेचने पर उत्पादन के खर्च बराबर भाव भी उस मावल को नहीं मिलता फिर ऐसे समय में वह कर्ज में डूब जाता है। उसके कर्जदार होने के बाद बैंक के अधिकारी बेहद पत्थर दिल होकर उनकी चौखट पर जाते हैं और नोटिस लगाकर ढोल बजाते हैं इसलिए मैं बैंकों-बैंकों पर जाकर ढोल बजा रहा हूं। बैंकों को ऐसी घुड़की दी है कि आपके बैंक से कितने किसान कर्जमुक्त होने वाले हैं। इसकी सूची बैंक के बाहर लगनी चाहिए। इसके लिए ढोल बजाए गए।